Friday, September 2, 2011

Maharani T R P Devi

     आजकल एक नई महारानी की जयजयकार हो रही है , ' महारानी टी आर पी देवी' . इनके कारण हाहाकार मचा हुआ है, मीडिया त्राहि त्राहि पुकार रहा है. यह रात को सपनों में आ आ कर डरा रही है तो किसी किसी को तो नींद ही नहीं आ रही. जिससे रूठ जाती है उसका बंटाधार  कर देती है, जीने के लाले पड़जाते हैं , सबेरे सबेरे राजगद्दी छिन जाने का डर रहता है. इसकी भंगिमा तनिक वक्र हुई कि निर्माता से लेकर चैनल तक सब पर ताले पड़ जाते हैं. इसीलिये भेड़चाल वाली राजनीति अपनाई जाती है. अण्णा मिल गए तो अण्णा के पीछे पड़ गए, रामदेव मिल गए तो रामदेव के. १९७१ में जब पूना फ़िल्म इंस्टिट्यूट से निकले थे तो गुरुदेव सतीश बहादुर एवं जनाब मुशीर अहमद साहब  का दिया एक ही गुरुमंत्र कानों में गूंजता था ," एक नया माध्यम आ रहा है, टी वी ; तुम लोग उससे जुड़ना, वही माध्यम स्वस्थ मनोरंजन और सही जानकारियों का खज़ाना बनेगा . तुम उसमें अपना योगदान देना , इससे समाज भी आगे बढ़ेगा और देश भी."  पर कुछ भी न बचा, केवल टी आर पी नाम का भस्मासुर बचा है जो धीरे धीरे एक सुनामी की तरह बढ़ता आ रहा है और जिसे मीडिया महारानी  मान बैठा है. यहाँ तक कि NDTV तक भी इससे नहीं बचा जो मीडिया का चक्रवर्ती महाराजाधिराज हुआ करता था, जिसे देख कर लगता था कि गणतंत्र का चौथा स्तम्भ काम कर रहा है किन्तु अब तो वह जिन मूल्यों के लिए जाना जाता था उन्हीं को कुचल रहा है, अपने विरोधियों की कतार में ही लग गया है.                                   

              जो भी हो जिसे ये लोग टी आर पी महारानी समझ रहे हैं, वास्तव में वह मोहिनी है जो एक दिन भस्मासुर के रूप में प्रगट हो कर मीडिया को ही लील जाएगी.

Thursday, August 25, 2011

BAAT SE PEHLE KEE BAAT

                                                            बात से पहले की बात                                                                          मित्रो मैं आपका नया मित्र आपसे निरंतर संवाद की आकांक्षा लिए आपके बीच उपस्थित हो गया  हूँ ! 'बात बोलेगी ' मेरा वह स्तम्भ है जो वर्षों जनसत्ता एवं कुछ अन्य पत्रिकाओं में  छपता रहा, पुस्तकाकार  में भी अवतरित होने  जा रहा है किन्तु बातों का  कोई अंत थोड़े ही है! बातें तो रोज़ पैदा होती हैं किन्तु महत्वपूर्ण बातें वे होती हैं जो बोलती भी हैं. ऐसी ही बोलती बातें लेकर में हर सप्ताह आपके बीच उपस्थित रहूँगा. आप इन्हें पढ़ने की कृपा करें (यदि रुचें तो !) और फिर इन पर चर्चा की जाये, मेरी तीखी से तीखी आलोचना हो, सुझाव हों, क्या पता बात कहाँ से कहाँ पहुँच जाए ! है न ! तो फिर अगले सप्ताह हम फिर मिलेंगे एक ऐसी बात के साथ जो बोलेगी!